नई दिल्ली एक फौजी की पत्नी होना आसान नहीं होता। जिस तरह एक फौजी सरहद में जंग लड़ता है उसी तरह उसकी पत्नी भी एक जंग लड़ती है। वो जंग जो उसके हर पल लड़नी होती है। 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को दो भागों में बांट दिया था। पाकिस्तान के कई इलाकों में तिरंगा लहरा गया था। भारतीय सेना के वीर जवानों की वीरता और पराक्रम की कई कहानियां आपने सुनीं होंगी। उनमे से एक थे कर्नल होशियार सिंह दहिया ( News)। आज दहिया की पत्नी एक कार्यक्रम में शरीक हुईं और रक्षा मंत्री ने जैसे उनको देखा वो भगते चले गए और जाकर उनके पैरों को छुआ। राजनाथ सिंह ने छुए पैरराजधानी दिल्ली में विजय पर्व समापन समारोह (Vijay Parv Samapan Samaroh) का आयोजन किया था। यहां पर कर्नल होशियार सिंह दहिया की पत्नी भी आईं हुईं थीं। राजनाथ सिंह ने जैसे ही उनकी पत्नी को देखा वो भागकर वहां पहुंचे और उनके पैर छूपकर आशीर्वाद लिया। उन्होंने अपना हाथ उनके सिर पर रखकर आशीर्वाद भी दिया। कर्नल होशियार सिंह जैसे जांबाज सिपाही की पत्नी भी उतनी बहादुर और वीर महिला है। महीनों गुजर जाते हैं लेकिन अपने हमसफर को देख नहीं पातीं। उस दौर में तो मोबाइल भी नहीं था। सोचकर भी रूह कांप जाती है हफ्तों अपने दिल के सबसे खास इंसान की कोई खबर नहीं मिलती। हर वक्त बस आस होती है एक ख़त की। कब उसका पैगाम आएगा और उस ख़त से वो खूब सारे बातें किया करेगी। जब तक दूसरा ख़त नहीं आ जाता तब तक उसी ख़त से खूब गुफ्तगू होती होगी। हर पल संघर्ष में बीताहोशियार सिंह की पत्नी ने वो सब कुछ सहा मगर कभी अपने चेहरे और अपने ख़तों से ये जाहिर नहीं होने दिया कि वो अपनी पति की याद में आंसू बहाती है। क्योंकि वो जानती है कि मुझसे भी जरुरी एक कर्तव्य है जिसका पालन उसका पति कर रहा है। वो लड़ती है हर पल, हर जंग जो आंखों से नहीं दिखती। वो जंग जो दिल के अंदर हर सेकंड चलती है। कुछ बातें महसूस की जाती है और हम ये महसूस कर पा रहे हैं कि जब उन्होंने सुना होगा कि पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो गया है तो उन पर क्या बीतती होगी। वो रेडियो या फिर डाक के इंतजार में रोटी तक खाना भूल गई होगी। आज उस वीर महिला के राजनाथ सिंह ने चरण छुए। टीम को लीड कर रहे थे कर्नल दहियाभारत-पाकिस्तान युद्ध सन 1971 के दौरान 15 दिसम्बर को गोलन्दाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह दहिया कर रहे थे। मेजर दहिया को आदेश दिया गया कि वह शंकरगढ़ सेक्टर में बसन्तार नदी के पार अपनी पोजीशन जमा लें। वह पाकिस्तान का सबसे अधिक सुरक्षित सैन्य ठिकाना था और उसमें पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या भी अधिक थी। यानी, दुश्मन यहां अधिक मजबूत स्थिति में था। फिर भी आदेश मिलते ही मेजर होशियार सिंह की बटालियन दुश्मनों की सेना पर टूट पड़ी। लेकिन मीडियम मशीनगन की ताबड़तोड़ गोलीबारी और क्रॉस फायरिंग के कारण इनकी बटालियन बीच में ही फंस गई। फिर भी मेजर होशियार सिंह दहिया विचलित नहीं हुए। उन्होंने बटालियन का नेतृत्व किया और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते ही गए। आख़िरकार उन्होंने उस स्थान पर कब्जा कर लिया, जिसके लिए उन्हें आदेश मिला था। अगले दिन पर दुश्मनों पर पड़े भारीलेकिन यहां पर शांति नहीं हुई। अब तक सब कुछ सही चल रहा था मगर अगले ही दिन 16 दिसंबर को फिर से पाकिस्तान के अधिक संख्या में सैनिक आ धमके। लेकिन होशियार सिंह बिल्कुल भी नहीं डगमगाए। उसी वीरता के साथ उन्होंने उनके दांत खट्टे कर दिए। होशियार सिंह जोर से लरकारते हुए अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहते। वो बार-बार भागते और सैनिकों से कहते कि दुश्मनों को छोड़ना नहीं। वो इतना जोश भर देते कि सैनिक पाकिस्तान के ऊपर मौत बनकर बरस पड़ते। इस दौड़-भाग में दुश्मनों की गोलियों की बौछार से वह और अधिक घायल हो गए। फिर भी उन्होंने अपनी जान की चिन्ता नहीं की और अपने साथियों का मनोबल बढ़ाते रहे। घमासान युद्ध चल ही रहा था कि अचानक एक पाकिस्तानी गोला उनकी मीडियम मशीनगन की एक चौकी के समीप आ गिरा। घायल हो गए थे सैनिक, खुद संभाली कमानइस बीच अनेक सैनिक घायल हो गए, मशीनगन बन्द हो गई। जब एक भारतीय मशीनगन का गनर वीरगति को प्राप्त हुआ तो उन्होंने खुद ही उसे संभाल लिया। उस दिन दुश्मन के 89 जवान मारे गए, जिनमें उनका कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा भी शामिल था। मशीनगन चलाना बहुत ही आवश्यक था, इस बात को समझकर मेजर होशियार सिंह ने अपने घावों और दर्द की चिन्ता नहीं की और तुरन्त उस चौकी पर पहुँचे और स्वयं मशीनगन चलानी शुरू कर दी। होशियार सिंह दहिया के बारे मेंमेजर (बाद में ब्रिगेडियर) होशियार सिंह दहिया का जन्म 5 मई 1937 हरियाणा के सोनीपत जिले के सिसाणा गांव में हिंदू जाट परिवार में हुआ था। होथियार सिंह ने भारतीय सेना में समर्पण के साथ सेवा की और ब्रिगेडियर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। होथियार सिंह दहिया का 6 दिसंबर 1998 में हार्ट अटैक से निधन हो गया था. होशियार सिंह दहिया को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि विजय पर्व 1971 में हुई पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत की जीत के 50 साल पूरे होने पर मनाया जा रहा है।
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